
शुरू में नए कर्मियों को ही लाभ, नियमावली बनाने के लिए कमेटी गठित... इसी माह राज्य सरकार को सौंपेगी रिपोर्ट।
बदलाव के लाभ के गणित को यूं समझें...
अगर किसी कर्मचारी की मौत हो जाती है तो उसके आश्रित को 7 साल तक बेसिक का 50 फीसदी और महंगाई भत्ता बतौर पेंशन मिलेगी। 7 साल के बाद बेसिक का 30% और महंगाई भत्ता मिलेगा। यानी अगर किसी कर्मचारी की मौत के समय बेसिक 50 हजार है तो आश्रित को 25 हजार और महंगाई भत्ता 7 साल तक मिलता रहेगा। सात साल के बाद बेसिक का 30 फीसदी यानी 15 हजार और महंगाई भत्ता पेंशन के रूप में मिलेगी।
रिवारिक पेंशन के लिए अब 7 साल की सेवा ही जरूरी।
केंद्र ने 2004 में एनपीएस लागू किया था। 2005 में बिहार सरकार ने भी अपने कर्मचारियों के लिए एनपीएस शुरू किया। प्रदेश में 1.95 लाख कर्मचारी एनपीएस के दायरे में आते हैं। दोनों में फर्क में हम इस रूप में समझ सकते हैं पुरानी पेंशन के लिए कर्मचारी की सैलरी से कोई कटौती नहीं होती थी। वहीं, एनपीएस में सैलरी से 10% की कटौती की जाती है, इसमें 14% हिस्सा सरकार भी देती है। पुरानी पेंशन योजना में जीपीएफ की सुविधा होती थी, लेकिन एनपीएस में यह नहीं है। पुरानी पेंशन योजना में रिटायरमेंट के समय की सैलरी की करीब आधी राशि पेंशन मिलती थी, और हर 6 महीने में महंगाई भत्ते का लाभ भी दिया जाता था। लेकिन, एनपीएस में ऐसा कोई लाभ नहीं मिलता है। एनपीएस में कर्मियों को रिटायरमेंट के समय कुल जमा राशि का 60% एक मुश्त दे दिया जाएगा। शेष 40% को शेयर बाजार में निवेश कर उसके आधार पर पेंशन तय होगी।
कोरोना संक्रमण के कारण केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों की सेवा शर्तों में कई बदलाव किए हैं।
ऐसा ही एक बदलाव पेंशन से भी जुड़ा है। मौत होने की स्थिति में अब पेंशन पाने के लिए सात साल की न्यूनतम सर्विस की शर्त ही रखी गई है। पहले प्रावधान था कि पेंशन पाने के लिए किसी भी स्थिति में दस साल की सेवा जरूरी है। लेकिन, अब मौत होने पर पारिवारिक पेंशन के लिए सात वर्ष की सेवा की शर्त रखी गई है। ऐसे में उनके परिजनों को आखिरी पेमेंट का 50 फीसदी पेंशन के तौर पर दी जाएगी। कार्मिक मंत्रालय ने हाल ही में इस आशय का आदेश भी जारी किया गया।