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शिक्षा के गिरते स्तर पर चिंता जताते हुए हाईकोर्ट ने कहा 'प्राइमरी शिक्षक सरकार के  सबसे अधिक वेतन पाने वाले कर्मचारियों में होना चाहिए।

 शिक्षा के गिरते स्तर पर चिंता जताते हुए हाईकोर्ट ने कहा 'प्राइमरी शिक्षक सरकार के  सबसे अधिक वेतन पाने वाले कर्मचारियों में होना चाहिए।

ग्वालियर। प्राथमिक शिक्षा के गिरते स्तर पर चिंता व्यक्त करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि प्राथमिक शिक्षक सरकार के सबसे अधिक वेतन पाने वाले कर्मचारियों में से एक होना चाहिए। इसके लिए प्राथमिक शिक्षक के पद से जुड़े वेतन-भत्ते बेहतर होने चाहिए, जिससे अध्यापन के लिए समाज के मेधावी वर्ग को आकर्षित किया जा सके। शिक्षक के वास्तविक गुण वाले को ही इस पद पर नियुक्त किया जा सके। ग्वालियर खंडपीठ की जस्टिस शील नागू और जस्टिस दीपक अग्रवाल की युगलपीठ ने शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम (डीएलएड) से संबंधित याचिका खारिज करते हुए यह बात कही। याचिका में पाठ्यक्रम के छात्र ने द्वितीय वर्ष में एक से अधिक सैद्धांतिक विषय में अनुत्तीर्ण होने पर दोबारा परीक्षा में बैठने की अनुमति मांगी थी। न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार ने शिक्षक पद के लिए न्यूनतम मानक तय किए हैं। इसी वजह से सरकारी प्राथमिक स्कूलों में औसत या उससे भी निचले स्तर के व्यक्ति शिक्षक बन गए हैं। न्यायालय ने सरकार से अपेक्षा की है कि राज्य सरकार और उसके जो अधिकारी शिक्षक पद की योग्यता के मानक तय करते हैं, वे सभी प्राथमिक शिक्षा के तेजी से गिरते स्तर को रोकने का प्रयास करें।

बीआरपी व सीआरसीसी को मूल विद्यालय में भेजने के आदेश का नहीं हुआ पालन।
रामगढ़: कैमूर में शिक्षा विभाग की कार्यशैली सवालों के घेरे में आ गई है। जिला शिक्षा विभाग के अधिकारी अपने ही बुने जाल में फंस गए हैं। जिला शिक्षा पदाधिकारी द्वारा 25 अगस्त को पत्र निर्गत कर जिले के सभी प्रखंडों के बीआरपी व सीआरसीसी को मूल विद्यालय में जाने का निर्देश दिया गया था। जिसपर जिला कार्यक्रम पदाधिकारी से लेकर लेखा व डायट के डीपीओ का भी हस्ताक्षर था। अब उसी आदेश को दो दिन बाद पलट दिया गया है। वह भी कोई वरीय पदाधिकारी के द्वारा नहीं बल्कि कनीय अधिकारी ने इसपर चुनाव आचार संहिता का हवाला देकर पत्र निर्गत कर निरस्त कर दिया। अब सवाल यह उठ रहा है कि जब चुनाव आचार संहिता का हवाला देना ही था तो उन्हें यह मालूम नहीं था कि 24 अगस्त को पंचायत चुनाव के लिए अधिसूचना जारी हुई है।

यह तो स्थानांतरण व ट्रांसफर पोस्टिंग के नियमों पर लागू होता है, न कि शिक्षक को उनके मूल विद्यालय में जाने के लिए यहां न तो किसी बीआरपी व सीआरसीसी का स्थानांतरण हुआ और न ही पदस्थापना जिला शिक्षा पदाधिकारी के द्वारा जारी पत्र में जिनका बीआरपी व सीआरसीसी का कार्यकाल तीन वर्ष हो गया है उन्हें अपने मूल विद्यालय में जाने का फरमान हुआ था। इसमें किसी शिक्षक को एक दूसरे जगह ट्रांसफर पोस्टिंग की बात नहीं हुई थी। फिर भी ऐसा कौन सा पहाड़ गिर पड़ा की अपने ही आदेश को पुनः बदलना पड़ा। वह भी बगैर अन्य पदाधिकारियों के सहमति का। वह भी एक कनीय पदाधिकारी द्वारा जो दर्शाता है कि कैमूर में शिक्षा विभाग सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। इस तरह के निर्णय से शिक्षा विभाग के अधिकारियों में आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है

गंभीर टिप्पणी अंततः वह मासूम बच्चा हारता है जो अच्छी शिक्षा के लिए आया।
न्यायालय ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए लिखा कि इस व्यवस्था में अंततः वह मासूम बच्चा हार जाता है, जो सरकारी प्राथमिक विद्यालय में गुणवत्ता शिक्षा की उम्मीद के साथ भर्ती होता है। विद्यालय में बच्चों को न केवल पढ़ना-लिखना सिखाया जाता बल्कि सही और गलत का अंतर करने की क्षमता भी विकसित कराया जाता है। नैतिक, अनैतिक का अंतर समझना और इससे बढ़कर समाज और राष्ट्र के लिए जीवन के अनुशासन भी यहीं सीखता है। यह मूलभूत गुण बच्चे में तभी आ सकते हैं, जब उसे पढ़ाने वाले शिक्षक चरित्र, आचरण, व्यवहार और मानवीय मूल्यों में उत्कृष्ट गुणवत्ता वाले हों।


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