
बिहार में नीतीश की सरकार एनडीए के साथ टूट चुकी है कुछ ही देर में अब आरजेडी यानी तेजस्वी यादव के साथ सरकार बनाएगी जिसके मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे तेजस्वी यादव ने चुनाव के दौरान किए वादों के अनुसार अब शिक्षकों को पूर्ण वेतन मान मिल सकती है।
बिहार में सियासी भूचाल है। नीतीश कुमार भाजपा से गठबंधन तोड़कर तेजस्वी यादव से हाथ में।
चल पलट। ये पटना में खूब चल रहा है। समझ गए होंगे। किसके लिए है ये। हां, नीतीश कुमार के लिए। पलटूराम कहना तो तेजस्वी यादव ने 22 अप्रैल से ही छोड़ दिया। इसलिए ये मत समझिए कि राष्ट्रीय जनता दल वाले ऐसा कह रहे हैं। वो तो इस बार की पलटी में सत्ता पाने वाले हैं। पिछली बार जब नीतीश कुमार ने पलटी मारी थी तो तेजस्वी सत्ता से बाहर हो गए थे। इसलिए नीतीश कुमार भी पलटूराम हो गए थे। इस बार तो नैचुरल अलायंस पार्टनर भारतीय जनतापार्टी इसका इंतजार कर रही थी- चल पलट। खैर, ये हो भी गया है।
नीतीश कुमार ने भाजपा-जदयू गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया है।पर नीतीश पलट क्यों रहे हैं, इस पर भी बहुत बात हो चुकी है। जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) को तोड़ने की कथित साजिश सबसे बड़ा कारण बताया जा रहा है। इसी का हिस्सा है टेप। हर कोई चर्चा कर रहा है। जेडीयू वाले भी और बीजेपी वाले भी। टेप में कुछ ऐसी रिकॉर्डिंग की चर्चा है जिसमें जेडीयू को तोड़ने की साजिश का पर्दाफाश हो सकता है। नीतीश कुमार कैबिनेट में जेडीयू और बीजेपी दोनों कोटे से एक-एस वरिष्ठ मंत्री ने एनबीटी को बताया - हां, ऐसा कुछ है।
भाजपा कोटे वाले मंत्री ने तो कुछ नाम भी बताए। पर वो खुद उस ऑडियो टेप को सुन नहीं पाए थे। इसलिए चर्चा के आधार पर नाम सार्वजनिक करना ठीक नहीं है। उन्होंने कहा, हां, सुन रहे हैं फलां फलां आरसीपी से बात कर रहे थे। वही कोई रिकॉर्डिंग है। अब ये सब कैसे हो गया, पता नहीं। उन्होंने स्पष्ट बताया कि नीतीश कुमार की खुन्नस इसी बात को लेकर सबसे ज्यादा है।
मतलब फोन टेप से एक और सरकार गिरनी तय है। भले नए सरकार का मुखिया नीतीश कुमार ही रहें। पहली सरकार तो रामकृष्ण हेगड़े की गिरी थी। कर्नाटक में। साल 1988 था। तब हेगड़े जनता पार्टी के एक धड़े और वीपी सिंह के जन मोर्चा के साथ जनता दल बनाए थे। उधर एचडी देवगौड़ा और अजित सिंह जनता पार्टी में ही रहे। इसी बीच देवगौड़ा और अजित सिंह की बातचीत टेप हो गई।
नीतीश का फोन भी टेप हुआ
संसद में संचार मंत्री बीर बहादुर सिंह ने सबूत के साथ बता दिया कि 50 नेताओं के फोन टेप हो रहे थे। बकायदा का डीआईजी इंटेलिजेंस के आदेश की चिट्ठी पटल पर रख दी गई। साफ हो गया कि पार्टी के भीतर और बाहर हेगड़े सरकार फोन टेप करवा रही थी। उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। अब तो मोबाइल का जमाना है।
सरकारी टेलीकॉम नहीं रहा। दो साल पहले 2020 में अशोक गहलोत ने माना कि पार्टी में ही विरोधियों के फोन टेप किए गए। सचिन पायलट ने सरकार गिरा ही दी थी। पर ऐन मौके पर बच गई। कर्नाटक में ही 2019 में एचडी कुमारस्वामी के समय फिर फोन टेपिंग ने सियासी भूचाल ला दिया। इस बीच तो वित्त मंत्री रहे प्रणब मुखर्जी, अमर सिंह, शरद पवार, अरुण जेटली जैसे बड़े नेताओं के फोन टेप होने की बातें सामने आई।
खुद नीतीश कुमार का फोन 2007 में टेप हुआ था। जब वो दिल्ली में बिहार के रेजिडेंट कमिश्नर का फोन इस्तेमाल कर रहे थे। तब भारत-अमेरिका सिविल न्यूक्लियर डील पर लेफ्ट के दबाव से मनमोहन सरकार हिली हुई थी। इस बार जिस टेप से नीतीश तमतमाए हुए हैं वो कैसे सामने आया होगा। या तो मोबाइल पर बात कर रहे नेताओं में से किसी ने खुद ही रिकॉर्ड कर लिया होगा और लीक कर दिया हो।
या फिर किसी ने टेलीकॉम कंपनियों को किसी खास नेता के फोन को सर्विलांस पर लगाने का आदेश दिया हो। टेलीग्राफ एक्ट के मुताबिक राज्य सरकार के गृह सचिव ऐसा आदेश दे सकते हैं। सच्चाई क्या है पता नहीं। टेप है, इतना तो दोनों खेमा मान रहे हैं। कुछ तो ये भी बता रहे कि ललन सिंह ने जिस सबूत की बात की है वो यही टेप है।