
1. पहल. विभिन्न शैक्षणिक परियोजनाओं को लेकर टारगेट तय।
2. शैक्षणिक योजनाओं के लिए पांच माह बाद केंद्र से मिली 7700 करोड़ की राशि।
3. नर्सरी से कक्षा तीन तक की पढ़ाई के लिए बजट का किया जायेगा विशेष उपयोग।
केंद्र ने वित्तीय वर्ष 2021-22 के शुरू होने के पांच माह बाद बिहार में केंद्रीय शिक्षा योजनाओं के संचालन के लिए 7700 करोड़ रुपये मंजूर किये हैं. केंद्र ने राशि देने की कवायद भी शुरू कर दी है. इधर, शिक्षा विभाग ने देरी से मिली इस धनराशि खर्च करने के लिए विशेष रणनीति तय की है. इस रणनीति के तहत नयी शिक्षा नीति के तहत नर्सरी से कक्षा तीन तक साक्षरता प्रसार पर फोकस किया जाना है. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने भी इस पर खास फोकस कर रखा है. आधिकारिक जानकारी के मुताबिक अनिवार्य शिक्षा के अधिकार के तहत जो भी जिम्मेदारियां तय हैं, उसे हर हाल में पूरा करने की रणनीति भी प्राथमिकता में रखा है।
केंद्र की तरफ से मंजूर बजट में शिक्षकों की सैलरी के अलावा इसी मदर पर सबसे अधिक के अलावा इसी पद पर सबसे अधिक 1455.65 करोड़ रुपये मंजूर किये हैं. शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने विभिन्न शैक्षणिक परियोजनाओं को पूरा करने के लिए टारगेट भी तय किये हैं, ताकि वित्तीय वर्ष के अंदर ही राशि को लक्ष्य करके राशि खर्च की जा सके. बुधवार को इस संदर्भ में विभाग के उच्चाधिकारियों के बीच अच्छा खासा विमर्श किया गया. जून 2021 में केंद्रीय अफसरों के साथ प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड की बैठक में बिहार के लिए 6632 करोड़ के बजट की अनुशंसा की गयी थी. हालांकि तब बिहार शिक्षा विभाग की तरफ से 13142 करोड़ का बजट प्रस्तावित किया गया था. कोरोना संकट के तहत प्रस्तावित राशि में कटौती की गयी थी. फिलहाल समग्र शिक्षा अभियान के तहत शिक्षकों की सैलरी के लिए 3308 करोड़ मंजूर किये गये हैं।
इसी तरह अन्य मदों में कटौती की गयी है, अपवाद रूप में खेलकूद और शारीरिक शिक्षा मद में कटौती नहीं की गयी है. उल्लेखनीय है कि पिछले तीन सालों से केंद्र प्रायोजित योजनाओं से जुड़े शैक्षणिक बजट में लगातार कमी की जा रही है।
केंद्र व राज्य की हिस्सेदारी अब 55:45 में।
विभागीय सूत्रों के मुताबिक एक दौर वह भी था कि बिहार का 13 से 14 हजार करोड़ रुपये का बजट मंजूर हुआ करता था. बजट में कमी आने से राज्य सरकार पर शिक्षा पर खर्च या उसकी हिस्सेदारी बढ़ जायेगी. जानकारों के मुताबिक केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी अब 55:45 में होगी. इससे पहले केंद्र की हिस्सेदारी 60 फीसदी और राज्य की 40 फीसदी हुआ करती थी।