
शिक्षकों के प्रधानाध्यापक पद पर प्रोन्नति के संबंध में कहना है कि अखबारों में प्रकाशित समाचार के आधार पर शिक्षकों की प्रोन्नति प्रधानाध्यापक पद पर नहीं होने के प्रावधान से पूरे शिक्षक समाज में आक्रोश व्याप्त हो गया है। किसी भी सेवा में प्रोन्नति सेवाकर्मियों का मौलिक अधिकार है। जिस सेवा में कर्मियों को कार्य कुशलता, दक्षता, कमठता एवं निष्ठा की उपेक्षा होती है, उससे राज्य का व्यापक अहित होता है और राष्ट्र निर्माण में भावी पीढ़ी के सुनहले सपने चकनाचूर होते हैं। पता नहीं किस मजबूरी में सरकार ने प्रोन्नति नहीं देने का प्रावधान किया है, उनके अधीन कार्यरत उच्च पदों पर पदाधिकारियों की प्रोन्नति दी जाती है अथवा नहीं? और जिस सरकार में वे सेवा दे रहे हैं। वैसे संवैधानिक सरकार उन्हें प्रोन्नति देती है अथवा नहीं? जो शिक्षक आज और भविष्य में ऐसे पदाधिकारियों का शिक्षण प्रशिक्षण करते हैं, उन्हें ही प्रोन्नति से वंचित करने का क्या यह निर्णय नैतिक कहा जा सकता है। इस समाचार से हमलोगों को गहरा आघात पहुँचा है। यदि शीघ्र इसका समाधान नहीं होगा तो शिक्षक आन्दोलित होंगे और इसकी जवाबदेही सरकार की होगी। हमें आशा है कि संवेदनशील शिक्षामंत्री प्रधानाध्यापक पद पर प्रोन्नति के अवसर से इन लाखों
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शिक्षकों को वंचित करने का कलंक नहीं लेंगे। देश की यह पहली सरकार होगी जो प्रोन्नति विहीन असंतुष्ट शिक्षकों से शिक्षा के गुणात्मक विकास का सपना साकार करना चाहती है।
हमें यह ताज्जुब है कि अभी तक लागू नियमावली में प्रधानाध्यापक पद पर शत-प्रतिशत प्रोन्नति और इसके पूर्व भी 50 प्रतिशत सहायक शिक्षकों के पद प्रोन्नति से भरे जाते रहे हैं। ऐसी कौन सी गंभीर परिस्थिति सरकार के सामने उपस्थित हुयी कि शिक्षकों को प्रताड़ित और अपमानित करने वाला निर्णय लेने के लिए विवश होना पड़ा। आपने पंचायती राज के नियोजित शिक्षकों में से ही प्रधानाध्यापक पद पर नियुक्ति कर उन्हें राज्यकर्मी भी घोषित कर दिया है। इसलिए बेहतर होगा कि तमाम शिक्षकों को भी राज्यकर्मी घोषित किया जाय। जिससे उन्हें सभी प्रकार को सरकारी सेवा का लाभ मिल सके।
बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ ने आपसे लिखित अनुरोध किया था कि नई सेवाशर्त नियमावली बनने के पूर्व प्रत्येक उपबंधों पर विचार-विमर्श किया जाय। लेकिन आपने अपनी व्यस्तता के कारण समय का निर्धारण नहीं किया। मंत्रिमंडल की मुहर लगाने के पूर्व अभी भी विचार-विमर्श का मौका है, अन्यथा शिक्षक समाज के प्रति यह अन्यायपूर्ण फैसला होगा। जिसे हमलोग कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे।