बिहार जमीन नियमों में बदलाव: DM को मिला नया अधिकार, खेसरा हटाने की प्रक्रिया आसान
बिहार सरकार ने जमीन से जुड़े मामलों में बड़ा फैसला लेते हुए DM को रोक सूची से खेसरा हटाने और जोड़ने का अधिकार दे दिया है। अब हर महीने इसकी समीक्षा की जाएगी। इससे जमीन निबंधन प्रक्रिया में तेजी आएगी और राजस्व में वृद्धि होगी। मद्य निषेध, उत्पाद एवं निबंधन विभाग ने इसका नोटिफिकेशन जारी किया है।
- बिहार सरकार ने डीएम को खेसरा हटाने और जोड़ने का अधिकार सौंपा
- अब हर महीने रोक सूची की समीक्षा करेंगे जिलाधिकारी
- मद्य निषेध, उत्पाद एवं निबंधन विभाग ने जारी किया पत्र
- मुजफ्फरपुर जिले में करीब एक लाख खेसरा रोक सूची में शामिल
बिहार सरकार ने जमीन से जुड़े मामलों में बड़ा फैसला लिया है। राज्य में बड़ी संख्या में जमीन की रोक सूची में दर्ज खेसरा को हटाने के लिए हो रहे आवेदनों को देखते हुए अब जिला निबंधक (DM) को नया अधिकार सौंपा गया है। अब डीएम खेसरा को रोक सूची से हटाने या जोड़ने का निर्णय खुद ले सकेंगे। इसके लिए प्रतिमाह समीक्षा भी अनिवार्य होगी।
इस निर्णय की जानकारी मद्य निषेध, उत्पाद एवं निबंधन विभाग के सचिव अजय यादव द्वारा मंगलवार को जारी एक पत्र के माध्यम से दी गई। उन्होंने बताया कि निबंधन पदाधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक के दौरान यह बात सामने आई कि खेसरा हटाने को लेकर बड़ी संख्या में आवेदन लंबित हैं।
इन आवेदनों पर निर्णय नहीं होने की वजह से जमीन का निबंधन नहीं हो पा रहा है। यही कारण है कि आवेदक अब न्यायालय का रुख कर रहे हैं। इसके साथ ही रोक सूची का समय पर अपडेट नहीं होने से राजस्व संग्रह पर भी असर पड़ रहा है, क्योंकि दस्तावेज निबंधन से ही विभाग को राजस्व प्राप्त होता है।
इसी को ध्यान में रखते हुए विभाग ने यह सुनिश्चित किया है कि रोक सूची संबंधी निर्णय नियमित रूप से लिए जाएं। इसके तहत सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे हर महीने सूची की समीक्षा करें और खेसरा नंबर जोड़ने या हटाने का निर्णय लें।
खास बात यह है कि मुजफ्फरपुर जिले की रोक सूची में ही लगभग एक लाख खेसरा शामिल हैं। जब निबंधन के दौरान इन खेसरा नंबरों में लॉक की स्थिति होती है, तो जमीन निबंधन रुक जाता है। ऐसे मामलों में संबंधित विभाग से अनुमति लेने के बाद ही प्रक्रिया पूरी हो पाती है, जिससे आवेदकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
अब डीएम के स्तर पर ही खेसरा के जोड़ने या हटाने की प्रक्रिया सरल होने से न सिर्फ आवेदकों को राहत मिलेगी बल्कि जमीन से जुड़ी न्यायिक जटिलताएं भी कम होंगी। साथ ही सरकार को भी राजस्व प्राप्ति में वृद्धि होगी।